बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- शाहजहाँ कालीन चित्रकला मुगल शैली पर प्रकाश डालिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जहाँगीर के समय के चित्रों में मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
2. जहाँगीर के चित्रों की रंग योजना कैसी थी?
उत्तर-
शाहजहाँ कालीन चित्रकला की मुगल शैली
जहाँगीर की मृत्यु के बाद सन् 1626 में शाहजहाँ राजगद्दी पर बैठा परन्तु जहाँगीर की तरह उसे चित्रकला से प्रेम नहीं था। वह बहुत शौक़ीन था परन्तु उसका शौक भवन-निर्माण कला में अधिक हुआ। आगरे का ताजमहल, लालकिला आदि उसने कई भव्य किले तथा महल बनवाये।
जहाँगीर के समय से चले आ रहे चित्रकारों ने चित्र तो बनाये परन्तु वे सब राज वैभव तथा नारी - सौन्दर्य आदि तक ही सीमित रहे। उन कलाकारों को अपनी कला स्वतन्त्र रूप से सृजन करने का अवसर शाहजहाँ ने नहीं दिया। इन बचे हुए चित्रकारों में, जिन्होंने शाहजहाँ के काल में भी चित्र रचनाएँ की, मनोहर, मोहम्मद नादिर, विचत्तर, गोवर्द्धन, होनहार, चित्रमन व बालचन्द आदि कलाकारों के नाम उल्लेखनीय हैं।
शाहजहाँ ने अपने काल के इतिहास की एक प्रति 'बादशाहनामा' के नाम से चित्रित कराई जिसमें कई सौ चित्र थे। अब ये चित्र इधर-उधर बिखर गये हैं। अधिकतर ब्रिटेन में विंडसर पैलेस में सुरक्षित हैं।
शाहजहाँ की 'सन्तों से भेटों' के चित्र बहुत सजीव व स्वतन्त्र रचनाएँ हैं जो राजवैभव व जकड़ बन्दी में नहीं है। कुछ ईसाई धर्म सम्बन्धी चित्र भी प्राप्त हैं जिनमें वास्तविकता तथा सौन्दर्य है।
इस समय के कुछ 'स्याह कलम' के चित्र भी मिलते हैं जो केवल काली रेखाओं के चित्रण हैं इनमें रंग नहीं हैं। चित्र बनाकर उनमें ऊपर से अण्डे की सफेदी का लेप चढ़ा दिया गया है जिससे काली रेखाएँ सुरक्षित बनी रहें।
शाहजहाँ के युग में जहाँगीर की चित्र परम्परा के अनुकूल ही चित्र रचना बराबर होती रही, परन्तु चित्र उस स्तर के नहीं बने जिस स्तर के जहाँगीर के समय में बने थे। शाहजहाँ दरबारी अदब व कायदे का बहुत मानने वाला था। यही बात उसके समय के चित्रों में भी मिलती है। दरबार के चित्रों में जिसका जहाँ स्थान है वह वहीं पर अंकित किया गया है। कुछ चित्रकार भी ऐसे चित्र बनाने में बन्धन का अनुभव करते थे, क्योंकि चित्र बनाते समय उसे दरबार के पूरे अनुशासन का ध्यान रखना पड़ता था। एक व्यक्ति भी यदि गलत जगह चित्रित हो गया तो शाहजहाँ नाराज हो जायेगा, यह बन्धन चित्रकार को मौलिक रूप से स्वतन्त्र चित्रण नहीं करने देता था जिसका परिणाम यह हुआ कि चित्र रचना का स्तर कम होने लगा। इस प्रकोर का एक दरबारी चित्र ऑक्सफोर्ड के पुस्तकालय में सुरक्षित है। जिसमें शाहजहाँ अपने दीवाने आम में एक फारसी राजदूत का स्वागत करता दिखाया गया है। यह राजदूत शाहजहाँ के दरबार में शाह अब्बास के पुत्र शाह सूफी द्वारा जो उस समय फारस का शंहशाह था भेजा गया था। यह राजदूत अपने साथ कुछ भेंट भी लाया जिसमें पाँच अरबी घोड़े थे तथा कुछ अन्य बहुमूल्य वस्तुएँ थीं (चित्र में शंहशाह अपने ऊँचे सिंहासन पर बैठा है, नीचे फारसी व्यक्तियों का दल है। राजदूत सलाम कर रहा है, कुछ व्यक्ति थालियों में उपहार लिये खड़े हैं और नीचे की ओर पाँच घोड़े भी खड़े हैं। मुगल अधिकारी अपने-अपने स्थान पर खड़े हैं, वेशभूषा में दोनों में अन्तर है जो फारसी व भारतीयों में विभिन्नता दर्शाता है।)
इस प्रकार बहुत से दरबारी चित्र अब भी प्राप्य हैं जिनमें दरबारी शान-शौकत तथा अनुशासन के दर्शन होते हैं।
इस समय के व्यक्ति चित्रण व छवि चित्रण करने वाले कलाकारों में मीर काशिम का नाम उल्लेखनीय है। इसके बनाये हुए बहुत से चित्र विभिन्न संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। उनमें एक 'मुगल सरदार' का चित्र पेरिस में एम० डिमोटी के संग्रह में है।
शाहजहाँ के बड़े लड़के दाराशिकोह को भी चित्रकला का बड़ा शौक था। वह चित्र का संग्रह करता था और चित्रों पर हस्ताक्षर कर देता था। इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी लन्दन में दारा शिकोह का एक व्यक्ति चित्र है तथा इसके संग्रह में एक चित्र बत्तखों का है जो बहुत सुन्दर हैं परन्तु इस कला प्रेमी को औरंगजेब के अत्याचार के कारण भागना पड़ा और एक कला प्रेमी कला की सेवा न कर सका। इस समय चित्रों के हाशियों में बादल व देव दूतों का चित्रण है।
शाहजहाँ कालीन मुगल शैली की विशेषता
1. व्यक्ति चित्र - इस शैली में व्यक्ति चित्र खूब बने। शाहजहाँ ने सूफी सन्तों, परिचितों तथा अपने अपने के सदस्यों के व्यक्ति चित्र बनवाए।
2. सोने-चाँदी के रंगों का प्रयोग - सोने-चाँदी के रंगों का अत्यधिक प्रयोग कुछ चित्रों में मिलता है जिसके कारण सजीवता में कमी प्रतीत होती है।
3. अदब कायदे के चित्र - चित्रों में अदब कायदे का बहुत अधिक चित्रण हैं जो भी दरबारी जिस स्थिति में होना चाहिए वहीं वह चित्रित हुआ। यदि थोड़ा भी अंकन में अन्तर आ जाता था तो शाहजहाँ नाराज हो जाता था।
4. शाहजहाँ की सन्तों से भेंट - इस विषय में चित्र बहुत सुन्दर बने हैं। इनमें जकड़बन्दी या अदब कायदा इतना नहीं है।
5. ईसाई धर्म सम्बन्धी चित्र - कुछ ईसाई धर्म सम्बन्धी चित्र बहुत सुन्दर बने हैं। जिनमें यूरोपियन प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
6. स्याह कलम के चित्र - इस समय केवल काली रेखा से कुछ चित्रों को बिना रंग के बनाया गया है जिन्हें स्याह कलम के चित्र कहते हैं। अण्डे के लेप से इन चित्रों को सुरक्षित किया गया है। इनमें बहुत महीन व सुन्दर रेखाओं का प्रयोग है।
8. महीन पच्चीकारी - गलीचों, आभूषणों, परदों और भवन सज्जा में बहुत महीन पच्चीकारी का प्रयोग मिलता है। बेल-बूटे बहुत उच्च स्तर के बनाये गये हैं।
9. रंग योजना - रंग योजना में बहुत परिश्रम किया गया प्रतीत होता है। बहुत सावधानी से समुचित रंगों का प्रयोग इस शैली के चित्रों में देखने को मिलता है। छाया प्रकाश दिखाने का भी प्रयास किया गया है।
इस प्रकार इस चित्र शैली में ह्रास प्रारम्भ हो गया था और जो कला जहाँगीर के समय चरम परिणति पर पहुँची थी उसका स्तर गिरता चला गया।
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